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रिश्तों का दलदल



रिश्तों के दलदल में, मैं डूबा रहा इस कदर,
तिल-तिल जिंदगी के दिन-साल बीते कुछ पलों में,
खैर...अब किया भी क्या जा सकता है, इन हसरतों का,
जो निकलती तो सैलाब की माफिक,
और बेकदर की जाती खैरात की माफिक। 

@Kavi Anjaan

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