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धार्मिक कट्टरता क्यों?



जैसा कि आज कल माहौल चल रहा है, एक धर्म का अपने को सर्वोपरि बताने और मानने का । जिसके लिए कुछ लोग इतने नीचे गिर चुके हैं कि दूसरे धर्मों के लोगों का जीवन उनके लिए कोई मायने नहीं रखता, किस प्रकार उनका दिमाग धार्मिक कट्टरता के जाल में फंस चुका है कि उनको किसी इंसान का जीवन खत्म करना बस एक पुण्य का कार्य लगने लगता है । होड़ लगी है तो बस एक दूसरे को धार्मिक रूप से छोटा दिखाने की, चाहे किसी के सिर से पिता का साया, पुत्र, भाई का साथ छूट जाए, परिवार बर्बाद हो जाए, कोई फर्क़ नहीं पड़ता।

आज कल जिस प्रकार की धार्मिक प्रतियोगिता चल रही है, इसने इंसान को इतना अंधा कर दिया है कि उसे नहीं पता कि उसके हाथ से क्या गुनाह हो रहा है, वो किस प्रकार अपना, अपने परिवार, अपने धर्म का नाश कर रहा है और तो और उससे भी बढ़ कर मानवता का विनाश कर रहा है । अब इस मानसिकता के लिए कौन जिम्मेदार हो सकते हैं, क्या धर्म इसके लिए जिम्मेदार है? या वो जो धार्मिक शिक्षा देने हेतु जिम्मेदार हैं? या वो जो इस प्रकार की मानसिकता पैदा करते हैं? 

सबको पता है कि परमात्मा एक ही है, चाहे उसे कोई भी नाम दो या ना दो, अगर प्रार्थना दिल से और मानवता की भलाई के लिए है तो परमात्मा के नाम की भी जरूरत नहीं है । सभी धर्मों में जितने भी संत या भगवान के अवतार हुए हैं सभी ने मानवता के मार्ग पर चलने का संदेश दिया हैं, ना की ये बोला है कि अपना धर्म सर्वोपरि है बाकी सब मिथ्या हैं । और अगर कहीं इस प्रकार का कुछ लिखा भी है तो उसका भाव अलग है, जबकि हम उस भाव का गलत मतलब निकालकर दूसरे धर्म को और उस धर्म के लोगों को नीचा दिखाने या उनको शारीरिक हानि पहुचाने में प्रयोग में लाते हैं और उसमें अपने को धर्म के प्रति समर्पित एवं वफादार की संज्ञा में जोड़ लेते हैं, ज़रा सोचिए इससे बड़ी मूर्खता और क्या होगी?

आखिर किस संतुष्टि के लिए हम इतने गुनाहगार होते जा रहे है कि सभी धर्म जो कि हमको मानवता के मार्ग पर चलना सीखाते हैं, उसी से विपरित दिशा में मानवता के विनाश की ओर जा रहे हैं, सिर्फ कुछ पल की मानसिक संतुष्टि के लिए की हम बड़े, हमारा धर्म बड़ा । इतना घमंडी होना कोई भी धर्म नहीं सिखाता, तो फिर मिट्टी के बने इस मानव पुतले पर इतना घमंड क्यों?

एक सीधा-साधा उदाहरण देता हूँ, मान लीजिए आप पूर्ण समर्पित होकर किसी भी धर्म को मानते हैं, आज आप अपने को हिन्दू,  मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि-आदि बोलते हो, तो जरा शांत मन से सोचिए इस बात की क्या निश्चितता है कि आपका अगला जन्म भी उसी धर्म में होगा? हो सकता है किसी और धर्म में हो और आज जो आपके बच्चे हैं, आपकी अगली पीढ़ियां है तब आप दूसरे धर्म में पैदा होकर इनको ही अपना दुश्मन समझे, उनको शारीरिक रूप से हानि पहुंचाये, बस इतना सोच लीजिए और फिर आपको अंतरात्मा से खुदबखुद इसका जवाब भी मिल जाएगा ।


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